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आपराधिक कानून

विवेचना में असहयोग

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 13-Jun-2024

XYZ  बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य

“यौन अपराध के मामले में आरोपी की ओर से चिकित्सीय परीक्षण कराने से इनकार करना विवेचना में असहयोग करने के समान होगा”।

न्यायमूर्ति पी. वी. संजय कुमार और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने  XYZ बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य मामले में कहा कि यौन अपराध के मामले में आरोपी की ओर से चिकित्सीय परीक्षण कराने से इनकार करना विवेचना में असहयोग करने के समान होगा।

XYZ बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में प्रतिवादी संख्या 2 पर 9 वर्षीय लड़की (पीड़िता) के यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया है।
  • प्रतिवादी संख्या 2 ने विवेचना के उद्देश्य से किया जाने वाला चिकित्सीय परीक्षण कराने से इनकार कर दिया।
  • कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक आदेश पारित किया, जिसके अधीन प्रतिवादी संख्या 2 को, विवेचना के उद्देश्य से विवेचना अधिकारी के साथ सहयोग करना आवश्यक था और इसके अधीन, प्रतिवादी-पुलिस को उसके विरुद्ध कोई भी बलपूर्वक कार्यवाही नहीं करने का निर्देश दिया गया था।
  • इसके अनुसरण में, विवेचना अधिकारी ने 17 मई 2024 को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 41-A के अधीन एक अधिसूचना जारी की, जिसमें प्रतिवादी संख्या 2 को मामले में विवेचना के उद्देश्य से चिकित्सा परीक्षण से कराने की आवश्यकता थी।
  • उसे 18 मई 2024 को पुलिस स्टेशन में उपस्थित होने का निर्देश दिया गया।
  • उन्होंने उच्च न्यायालय में एक आवेदन दायर कर कहा कि विवेचना अधिकारी उन्हें धमकी दे रहे हैं कि अगर वह उसी अस्पताल में चिकित्सा परीक्षण के लिये नहीं गया जहाँ पीड़िता का चिकित्सा परीक्षण किया गया था तो उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। इसके उपरांत उच्च न्यायालय ने उस अधिसूचना पर रोक लगा दी जिसमें आरोपी को चिकित्सा परीक्षण कराने के लिये कहा गया था।
  • कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा पारित अंतिम निर्णय और आदेश से व्यथित होकर याचिकाकर्त्ता (पीड़िता की माँ) ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की।
  • याचिकाकर्त्ता की ओर से उपस्थित अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उक्त आदेश में चिकित्सा परीक्षण रिपोर्ट को अनदेखा कर दिया गया, जिसमें यौन संबंध होने का संकेत था और पीड़िता के धारा 164 CrPC के अधीन दिये गए बयान को अनदेखा कर दिया गया, जिससे आरोपी को दोषी ठहराया गया।
  • उच्चतम न्यायालय ने प्रतिवादी संख्या 2 को चिकित्सा परीक्षण के लिये विवेचना अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • न्यायमूर्ति पी. वी. संजय कुमार और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि किसी भी स्थिति में, उनका यह स्पष्ट बयान कि वह चिकित्सा परीक्षण नहीं कराना चाहते, यह दर्शाता है कि वह विवेचना में सहयोग करने के इच्छुक नहीं हैं।
  • आगे कहा गया कि प्रतिवादी संख्या 2 को CrPC की धारा 41-A का अनुपालन करना होगा और विवेचना अधिकारी के निर्देशानुसार खुद को चिकित्सा परीक्षण के लिये प्रस्तुत करना होगा। वह बिना किसी ठोस आधार के उस चिकित्सा सुविधा के विषय में आशंका व्यक्त नहीं कर सकता है जिसके लिये उसे भेजा जा रहा है।

चिकित्सा परीक्षण के संबंध में प्रासंगिक विधिक प्रावधान क्या हैं?

परिचय: 

यौन उत्पीड़न के आरोपियों और पीड़ितों की चिकित्सा परीक्षण को भारतीय विधिक प्रणाली में वैधानिक मान्यता प्राप्त है। 

चिकित्सा परीक्षण घटना के विषय में सही तथ्य जानने के लिये  किया जाता है। इससे पुलिस अधिकारियों को ठोस साक्ष्य मिल जाते हैं, जिससे उन्हें विवेचना प्रक्रिया में तीव्रता लाने में सहायता मिलती है।

अभियुक्त की चिकित्सा जाँच: 

CrPC की धारा 53: 

यह धारा पुलिस अधिकारी के अनुरोध पर चिकित्सक द्वारा अभियुक्त के परीक्षण से संबंधित है। यह कहती है कि- 

(1) जब किसी व्यक्ति को ऐसी प्रकृति का अपराध करने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है और यह कहा जाता है कि अपराध ऐसी परिस्थितियों में किया गया है कि यह मानने के लिये उचित आधार हैं कि उसके शरीर की परीक्षा से अपराध किये जाने के संबंध में साक्ष्य प्राप्त होगा, तब उपनिरीक्षक की पद से अन्यून पद के पुलिस अधिकारी के अनुरोध पर कार्य करने वाले किसी पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी तथा और उसकी सहायता में और उसके निर्देश के अधीन सद्भावपूर्वक कार्य करने वाले किसी व्यक्ति के लिये, गिरफ्तार किये गए व्यक्ति की ऐसी परीक्षा करना, जो ऐसे तथ्यों का पता लगाने के लिये उचित रूप से आवश्यक हो एवं जो ऐसा साक्ष्य प्राप्त कर सकें और ऐसा बल प्रयोग करना, जो उस प्रयोजन के लिये उचित रूप से आवश्यक हो, वैध होगा।

(2) जब कभी किसी महिला के शरीर का परीक्षण इस धारा के अधीन किया जाना हो तो यह परीक्षण केवल महिला पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा या उसके पर्यवेक्षण में की जाएगी।

स्पष्टीकरण— इस धारा में तथा धारा 53A और 54 में— 

(a)"परीक्षण" में रक्त, रक्त के धब्बे, वीर्य, ​​यौन अपराधों के मामले में स्वाब, थूक और पसीना, बालों के नमूने तथा उंगली के नाखूनों की कतरनों की जाँच शामिल होगी, जिसमें डीएनए प्रोफाइलिंग सहित आधुनिक एवं वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग किया जाएगा और ऐसे अन्य परीक्षण किये जाएंगे जिन्हें पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी किसी विशेष मामले में आवश्यक समझे।

(b) "पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी" से तात्पर्य ऐसे चिकित्सा व्यवसायी से है, जिसके पास भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 (1956 का 102) की धारा 2 के खंड (h) में परिभाषित कोई चिकित्सा योग्यता है और जिसका नाम राज्य चिकित्सा रजिस्टर में दर्ज है।

CrPC की धारा 53A: 

यह धारा बलात्संग के आरोपी व्यक्ति की चिकित्सा व्यवसायी द्वारा परीक्षण से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि—

(1) जब किसी व्यक्ति को बलात्संग या बलात्संग का प्रयास करने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है और यह मानने के लिये उचित आधार हैं कि उसके शरीर की परीक्षा से ऐसे अपराध के किये जाने के बारे में साक्ष्य मिलेगा, तो शासन या स्थानीय प्राधिकारी द्वारा चलाए जा रहे चिकित्सालय में नियोजित पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी के द्वारा और जहाँ अपराध किया गया है, उस स्थान से सोलह किलोमीटर की परिधि के भीतर ऐसे चिकित्सा व्यवसायी की अनुपस्थिति में, उप-निरीक्षक के पद से अन्यून पुलिस अधिकारी के अनुरोध पर कार्य करने वाले किसी अन्य पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा और उसकी सहायता में तथा उसके निर्देश के अधीन सद्भावपूर्वक कार्य करने वाले किसी व्यक्ति द्वारा गिरफ्तार व्यक्ति की ऐसी परीक्षा करना एवं ऐसा बल प्रयोग करना वैध होगा, जो उस प्रयोजन के लिये उचित रूप से आवश्यक हो।

(2) ऐसी परीक्षा आयोजित करने वाला पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी बिना किसी देरी के ऐसे व्यक्ति का परीक्षण करेगा और उस परीक्षण की एक रिपोर्ट तैयार करेगा जिसमें निम्नलिखित विवरण दिये जाएंगे, अर्थात्— 

(i) अभियुक्त का नाम और पता तथा उस व्यक्ति का नाम जिसके द्वारा उस अभियुक्त को लाया गया था।

(ii) अभियुक्त की आयु।

(iii) अभियुक्त के शरीर पर चोट के निशान, यदि कोई हों।

(iv) डीएनए प्रोफाइलिंग के लिये अभियुक्त के शरीर से ली गई सामग्री का विवरण।

(v) अन्य सामग्री विवरण उचित विस्तार में। 

(3) रिपोर्ट में प्रत्येक निष्कर्ष के कारणों का स्पष्ट उल्लेख किया जाएगा।

(4) रिपोर्ट में परीक्षण के प्रारंभ और समाप्ति का सही समय भी अंकित किया जाएगा।

(5) पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी बिना विलंब के रिपोर्ट को विवेचना अधिकारी को भेजेगा, जो उसे धारा 173 में निर्दिष्ट मजिस्ट्रेट को उस धारा की उपधारा (5) के खंड (a) में निर्दिष्ट दस्तावेज़ों के भाग के रूप में भेजेगा।

गिरफ्तार व्यक्ति का चिकित्सा परीक्षण:

CrPC की धारा 54: 

यह धारा चिकित्सा अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार व्यक्ति के चिकित्सा परीक्षण से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि—

(1) जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है, तो गिरफ्तारी के तुरंत बाद उसका  चिकित्सा परीक्षण केंद्र या राज्य सरकार की सेवा में लगे चिकित्सा अधिकारी द्वारा की जाएगी और यदि चिकित्सा अधिकारी उपलब्ध नहीं है, तो पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा की जाएगी परंतु जहाँ गिरफ्तार व्यक्ति महिला है, वहाँ उसके शरीर का परीक्षण केवल महिला चिकित्सा अधिकारी द्वारा या उसकी देखरेख में की जाएगी तथा यदि महिला चिकित्सा अधिकारी उपलब्ध नहीं है, तो महिला पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा की जाएगी।

(2) गिरफ्तार व्यक्ति का इस प्रकार परीक्षण करने वाला चिकित्सा अधिकारी या पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी ऐसे  परीक्षण का अभिलेख तैयार करेगा, जिसमें गिरफ्तार व्यक्ति पर लगी किसी चोट या हिंसा के निशान का तथा उस समय का उल्लेख होगा जब ऐसी चोट या निशान पहुँचाए गए होंगे।

(3) जहाँ उपधारा (1) के अधीन परीक्षा की जाती है, वहाँ ऐसे परीक्षण के अभिलेख की एक प्रति, यथास्थिति, चिकित्सा अधिकारी या रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा गिरफ्तार व्यक्ति को या ऐसे गिरफ्तार व्यक्ति द्वारा नामित व्यक्ति को दी जाएगी।

बलात्संग पीड़िता का चिकित्सा परीक्षण: 

CrPC की धारा 164A: 

यह धारा बलात्संग पीड़िता के चिकित्सा परीक्षण से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि—

(1) उस स्थिति में जहाँ किसी महिला के साथ बलात्संग करने या बलात्संग करने का प्रयास करने का अपराध विवेचनाधीन है, उस महिला के शरीर की, जिसके साथ बलात्संग होने का अभिकथन किया गया है या बलात्संग करने का प्रयास किया गया है, किसी चिकित्सा विशेषज्ञ द्वारा परीक्षण कराने का प्रस्ताव है, वहाँ  ऐसा परीक्षण शासन या स्थानीय प्राधिकारी द्वारा चलाए जा रहे चिकित्सालय में नियोजित पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा की जाएगा तथा ऐसे चिकित्सा व्यवसायी की अनुपस्थिति में ऐसी महिला की या उसकी ओर से ऐसी सहमति देने के लिये सक्षम व्यक्ति की सहमति से किसी अन्य पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा की जाएगा और ऐसी महिला को ऐसे अपराध के किये जाने से संबंधित सूचना प्राप्त होने के समय से चौबीस घंटे के भीतर ऐसे पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी के पास भेजा जाएगा।

(2) पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी, जिसके पास ऐसी महिला भेजी जाती है, बिना देरी किये उसके शरीर का परीक्षण करेगा और निम्नलिखित विवरण देते हुए उस परीक्षण की रिपोर्ट तैयार करेगा, अर्थात्— 

(i) महिला का नाम और पता तथा उस व्यक्ति का नाम जिसके द्वारा उसे लाया गया था।

(ii) महिला की उम्र।

(iii) डीएनए प्रोफाइलिंग के लिये महिला के शरीर से ली गई सामग्री का विवरण।

(iv) महिला के शरीर पर चोट के निशान, यदि कोई हों।

(v) महिला की सामान्य मानसिक स्थिति।

(vi) अन्य सामग्री विवरण उचित विस्तार में।

(3) रिपोर्ट में प्रत्येक निष्कर्ष के कारणों का स्पष्ट उल्लेख किया जाएगा।

(4) रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से यह दर्ज किया जाएगा कि ऐसे परीक्षण के लिये महिला या उसकी ओर से सहमति देने वाले व्यक्ति की सहमति प्राप्त कर ली गई है। 

(5) रिपोर्ट में परीक्षण के प्रारंभ और समाप्ति का सही समय भी अंकित किया जाएगा।

(6) पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी बिना विलंब के रिपोर्ट को विवेचना अधिकारी को भेजेगा जो उसे धारा 173 में निर्दिष्ट मजिस्ट्रेट को उस धारा की उपधारा (5) के खंड (a) में निर्दिष्ट दस्तावेज़ों के भाग के रूप में भेजेगा।

(7) इस धारा की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि महिला की या उसकी ओर से ऐसी सहमति देने में सक्षम किसी व्यक्ति की सहमति के बिना कोई परीक्षा वैध है।

पीड़ितों का उपचार: 

  • CrPC की धारा 357C पीड़ितों के उपचार से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि सभी चिकित्सालय, सार्वजनिक या निजी, चाहे वे केंद्र सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय निकाय या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा चलाए जा रहे हों, भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 326A, 376, 4 [376A, 376AB, 376B, 376C, 376D, 376DA, 376DB या धारा 376E के अधीन आने वाले किसी भी अपराध के पीड़ितों को तुरंत प्राथमिक उपचार या चिकित्सा उपचार बिना किसी शुल्क के प्रदान करेंगे तथा तत्काल ऐसी घटना की सूचना पुलिस को देंगे।

CrPC की धारा 41-A क्या है?

यह धारा पुलिस अधिकारी के समक्ष उपस्थिति की सूचना से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि- 

(1) पुलिस अधिकारी उन सभी मामलों में, जहाँ धारा 41 की उपधारा (1) के उपबंधों के अधीन किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी अपेक्षित नहीं है, अधिसूचना जारी करके उस व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध उचित शिकायत की गई है या विश्वसनीय सूचना प्राप्त हुई है या उचित संदेह है कि उसने कोई संज्ञेय अपराध किया है, उसके समक्ष या ऐसे अन्य स्थान पर, जैसा अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए, उपस्थित होने का निर्देश देगा।

(2) जहाँ  किसी व्यक्ति को ऐसी अधिसूचना जारी की जाती है, वहाँ उस व्यक्ति का यह कर्त्तव्य होगा कि वह अधिसूचना की शर्तों का पालन करे।

(3) जहाँ ऐसा व्यक्ति अधिसूचना का अनुपालन करता है और अनुपालन करना जारी रखता है, उसे अधिसूचना में निर्दिष्ट अपराध के संबंध में तब तक गिरफ्तार नहीं किया जाएगा जब तक कि, अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से, पुलिस अधिकारी की यह राय न हो कि उसे गिरफ्तार किया जाना चाहिये।

(4) जहाँ ऐसा व्यक्ति किसी भी समय अधिसूचना की शर्तों का पालन करने में असफल रहता है या अपनी पहचान बताने के लिये तैयार नहीं होता है, वहाँ पुलिस अधिकारी, इस संबंध में सक्षम न्यायालय द्वारा पारित आदेशों के अधीन रहते हुए, अधिसूचना में उल्लिखित अपराध के लिये उसे गिरफ्तार कर सकता है।